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राष्ट्रकूट मराठा सम्राट गोविंद तृतीय। राष्ट्रकूट मराठा राजवंश। 96 कुली क्षत्रिय मराठा।

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इस व्हिडिओ के माध्यम से हमने राष्ट्रकूट मराठा वंश के सबसे प्रतापी सम्राट गोविंद तृतीय के बारे मे जानकारी दि है। राष्ट्रकूट मराठा वंश ने ईस्वी 757 से 973 तक ऐसे 216 वर्ष शासन किया। राष्ट्रकूट मूल रूप से महाराष्ट्र के वेरुल यानी एलोरा गांव के थे, जो आज महाराष्ट्र के छत्रपति संभाजी नगर जिले में स्थित है। राष्ट्रकूट वंश की राजधानी शुरुआत में मयूरखंडी थी। यानी महाराष्ट्र कर्नाटक की सीमा पर, बसवकल्याण के पास अभी का मोरखंडी गांव। बाद में राष्ट्रकूट सम्राट अमोघवर्ष प्रथम ने उसे मान्यखेट में स्थानांतरित किया। यानी आज के कर्नाटक के गुलबर्गा जिले का मालखेड़ गांव। गोविंद तृतीय के पिता ध्रुव धारावर्ष थे, यह भी राष्ट्रकूट मराठा वंश के बहुत प्रतापी शासक थे। ध्रुव धारावर्ष ने भी राष्ट्रकूट साम्राज्य का बहुत विस्तार किया, उत्तर भारत में राष्ट्रकूट साम्राज्य को फैलाया। और उत्तर भारत के गुर्जर प्रतिहार वंश के शासक वत्सराज का, और पाल वंश के शासक धर्मपाल का भी पराभव किया। ध्रुव धारावर्ष ने कन्नौज के त्रिपक्षीय संघर्ष में भाग लिया था। ध्रुव धारावर्ष के बाद उनके पुत्र गोविंद तृतीय राष्ट्रकूट मराठा वंश के अगले सम्राट बने।गोविंद तृतीय यह राष्ट्रकूट मराठा वंश के पांचवें शासक थे। मराठा सम्राट गोविंद तृतीय ने इसवी 793 से 814 तक ऐसे 21 वर्ष शासन किया। गोविंद तृतीय राष्ट्रकूट मराठा वंश के सबसे ज्यादा पराक्रमी सम्राट थे। गोविंद तृतीयने पूर्वी चालुक्य यानी आंध्रप्रदेश वेंगी के चालुक्य राजा, विजयादित्य द्वितीय को पराजित किया, और वह प्रदेश राष्ट्रकूट साम्राज्य मे मिला लिया। उसके बाद उन्होने कौशल नरेश को भी पराजित किया और आंध्र प्रदेश का कुछ हिस्सा जीत लिया। गोविंद तृतीया ने तमिलनाडु कांची के पल्लव राजा दंतीवर्मन को भी पराजित किया और कांची का प्रदेश जीत लिया। ये सब पराक्रम देखकर श्रीलंका के राजाने बिना युद्ध किये खुद से ही गोविंद तृतीय का अधिपत्य स्वीकार किया। दक्षिण भारत जितने के बाद गोविंद तृतीय ने आपणा लक्ष उत्तर भारत की तरफ मोडा। उन्होने उत्तर भारत के कन्नौज के त्रिपक्षीय संघर्ष में भाग लिया। उत्तर भारत में उस समय गुर्जर प्रतिहार वंश और पाल वंश यह दो शक्तिशाली राजवंश थे। सम्राट गोविंद तृतीय ने गुर्जर प्रतिहार वंश के शासक नागभट्ट द्वितीय को पराजित किया। उसके बाद उन्होने पाल वंश के शासक धर्मपाल को भी पराजित किया। और उसके बाद उन्होने कन्नोज के शासक चक्रायुद्ध को भी पराजित किया। और इस तरह सम्राट गोविंद तृतीय ने कन्नोज का त्रीपक्षीय संघर्ष जीता। और अपना राष्ट्रकूट साम्राज्य उत्तर मे कन्नोज तक फैला दिया। कन्नोज को जितने के बाद सम्राट गोविंद तृतीय ने श्रीवल्लभ और पृथ्वी वल्लभ यह उपाधीया धारण की। सम्राट गोविंद तृतीय केवल राष्ट्रकूट वंश के ही नही, दक्षिण भारत के पहले ऐसे सम्राट बने, जिनका साम्राज्य उत्तर भारत के कन्नौज तक था। सम्राट गोविंद तृतीय का राष्ट्रकूट साम्राज्य उत्तर मे कन्नोज से लेकरं दक्षिण में कन्याकुमारी तक, और पूर्व में वाराणसी से लेकर पश्चिम मे गुजरात के भडोच तक था। इसलिये सम्राट गोविंद तृतीय के घोडो ने हिमालय से लेकर कन्याकुमारी तक का पानी पीया है ऐसा कहा जाता था। सम्राट गोविंद तृतीय के बाद उनके पुत्र अमोघवर्ष प्रथम राष्ट्रकूट साम्राज्य के अगले सम्राट बने।
जय भवानी जय शिवराय जय महाराष्ट्र जय हिंदूराष्ट्र🚩🕉️

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