पौराणिक कथाओं के अनुसार, माता पार्वती ने अपने उबटन (शरीर से निकली हल्दी) से एक बालक का निर्माण किया और उसे जीवनदान दिया। यह बालक कोई और नहीं बल्कि भगवान गणेश थे। माता पार्वती ने उन्हें द्वारपाल के रूप में खड़ा कर दिया और आदेश दिया कि कोई भी भीतर न आए।
इसी समय, भगवान शिव वहां पहुंचे और अंदर जाने लगे, लेकिन गणेशजी ने उन्हें रोक दिया। शिवजी को यह व्यवहार अक्षम्य लगा और उन्होंने अपने त्रिशूल से बालक का सिर काट दिया। माता पार्वती जब यह दृश्य देखती हैं तो विलाप करने लगती हैं और भगवान शिव से गणेश को पुनर्जीवित करने का अनुरोध करती हैं।
भगवान शिव ने तुरंत आदेश दिया कि किसी जीव का सिर लाया जाए, जो उत्तर दिशा की ओर मुख किए हो। शिवगणों को एक हाथी का सिर मिला, जिसे लाकर गणेश के धड़ पर स्थापित कर दिया गया। इस प्रकार, भगवान गणेश का पुनर्जन्म हुआ और वे "गजानन" कहलाए। शिवजी ने उन्हें प्रथम पूज्य देवता का आशीर्वाद दिया और यह वरदान दिया कि हर शुभ कार्य से पहले उनकी पूजा की जाएगी।
इस प्रकार गणपति बप्पा "विघ्नहर्ता" और "मंगलमूर्ति" बन गए, जिनकी आराधना हर शुभ कार्य से पहले की जाती है।
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