श्री महालक्ष्मी अष्टक, धन वृद्धि, व्यापार वृद्धि और समस्त कामना पूर्ति हेतु सुनें 11 पाठ lll
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इन्द्र उवाच
नमस्तेस्तु महामाये श्री पीठे सुर पूजिते। शंख चक्र गदा हस्ते महालक्ष्मी नमोस्तुते।।१।।
इन्द्र बोले, श्रीपीठ पर स्थित और देवताओं से पूजित होने वाली हे महामाये। तुम्हें नमस्कार है। हाथ में शंख, चक्र और गदा धारण करने वाली हे महालक्ष्मी! तुम्हें प्रणाम है।
नमस्तेतु गरुदारुढै कोलासुर भयंकरी। सर्वपाप हरे देवी महालक्ष्मी नमोस्तुते।।२।।
गरुड़ पर आरुढ़ हो कोलासुर को भय देने वाली और समस्त पापों को हरने वाली हे भगवति महालक्ष्मी! तुम्हें प्रणाम है।
सर्वज्ञे सर्व वरदे सर्व दुष्ट भयंकरी। सर्वदुख हरे देवी महालक्ष्मी नमोस्तुते।।३।।
सब कुछ जानने वाली, सबको वर देने वाली, समस्त दुष्टों को भय देने वाली और सबके दु:खों को दूर करने वाली, हे देवि महालक्ष्मी! तुम्हें नमस्कार है।
सिद्धि बुद्धि प्रदे देवी भक्ति मुक्ति प्रदायनी। मंत्र मुर्ते सदा देवी महालक्ष्मी नमोस्तुते।।४।।
सिद्धि, बुद्धि, भोग और मोक्ष देने वाली हे मन्त्रपूत भगवती महालक्ष्मी! तुम्हें सदा प्रणाम है।
आध्यंतरहीते देवी आद्य शक्ति महेश्वरी। योगजे योग सम्भुते महालक्ष्मी नमोस्तुते।।५।।
हे देवी! हे आदि–अन्तरहित आदिशक्ति! हे महेश्वरी! हे योग से प्रकट हुई भगवती महालक्ष्मी! तुम्हें नमस्कार है।
स्थूल सुक्ष्मे महारोद्रे महाशक्ति महोदरे। महापाप हरे देवी महालक्ष्मी नमोस्तुते।।६।।
हे देवी! तुम स्थूल, सूक्ष्म एवं महारौद्ररूपिणी हो, महाशक्ति हो, महोदरा हो और बड़े–बड़े पापों का नाश करने वाली हो। हे देवी महालक्ष्मी! तुम्हें नमस्कार है।
पद्मासन स्थिते देवी परब्रह्म स्वरूपिणी। परमेशी जगत माता महालक्ष्मी नमोस्तुते।।७।।
हे कमल के आसन पर विराजमान परब्रह्मस्वरूपिणी देवी! हे परमेश्वरी! हे जगदम्ब! हे महालक्ष्मी! तुम्हें मेरा प्रणाम है।
श्वेताम्भर धरे देवी नानालन्कार भुषिते। जगत स्थिते जगंमाते महालक्ष्मी नमोस्तुते।।८।।
हे देवी तुम श्वेत एवं लाल वस्त्र धारण करने वाली और नाना प्रकार के अलंकारों से विभूषिता हो। सम्पूर्ण जगत् में व्याप्त एवं अखिल लोक को जन्म देने वाली हो। हे महालक्ष्मी! तुम्हें मेरा प्रणाम है।
स्तोत्र पाठ का फल
महालक्ष्मी अष्टक स्तोत्रं य: पठेत भक्तिमान्नर:। सर्वसिद्धि मवाप्नोती राज्यम् प्राप्नोति सर्वदा।।९।।
जो मनुष्य भक्तियुक्त होकर इस महालक्ष्म्यष्टक स्तोत्र का सदा पाठ करता है, वह सारी सिद्धियों और राजवैभव को प्राप्त कर सकता है।
एक कालम पठेनित्यम महापापविनाशनम। द्विकालम य: पठेनित्यम धनधान्यम समन्वित:।।१०।।
जो प्रतिदिन एक समय पाठ करता है, उसके बड़े–बड़े पापों का नाश हो जाता है। जो दो समय पाठ करता है, वह धन–धान्य से सम्पन्न होता है।
त्रिकालम य: पठेनित्यम महाशत्रुविनाषम। महालक्ष्मी भवेनित्यम प्रसंनाम वरदाम शुभाम।। ११।।
जो प्रतिदिन तीन काल पाठ करता है उसके महान शत्रुओं का नाश हो जाता है और उसके ऊपर कल्याणकारिणी वरदायिनी महालक्ष्मी सदा ही प्रसन्न होती हैं।
॥इतिंद्रकृत श्रीमहालक्ष्म्यष्टकस्तवः संपूर्णः ॥
महालक्ष्मी के निम्नलिखित 11 नामों के साथ इस स्तोत्र का पाठ अत्यंत शुभ और फलदायक माना गया है।
पद्मा, पद्मालया, पद्मवनवासिनी, श्री, कमला, हरिप्रिया, इन्दिरा, रमा, समुद्रतनया, भार्गवी और जलधिजा आदि नामों से पूजित देवी महालक्ष्मी वैष्णवी शक्ति हैं।
श्री महालक्ष्म्यष्टकम् ॥
श्री गणेशाय नमः
समस्त ऐश्वर्यों की अधिष्ठात्री और अपार धन सम्पत्तियों को देने वाली महालक्ष्मी की आराधना हर दिन करनी चाहिए। महालक्ष्मी की कृपा सेे वैभव, सौभाग्य, आरोग्य, ऐश्वर्य, शील, विद्या, विनय, ओज, गाम्भीर्य और कान्ति मिलती है। आश्चर्यजनक रूप से असीम संपदा मिलती है। प्रस्तुत है इन्द्र द्वारा रचित महालक्ष्मी कृपा प्रार्थना स्तोत्र जिसमें श्री महालक्ष्मी की अत्यंत सुंदर उपासना की गई है। इन्द्र कृत महालक्ष्मी कृपा प्रार्थना स्तोत्र की कथाएक बार देवराज इन्द्र ऐरावत हाथी पर चढ़कर जा रहे थे। रास्ते में दुर्वासा मुनि मिले। मुनि ने अपने गले में पड़ी माला निकालकर इन्द्र के ऊपर फेंक दी। जिसे इन्द्र ने ऐरावत हाथी को पहना दिया। तीव्र गंध से प्रभावित होकर ऐरावत हाथी ने सूंड से माला उतारकर पृथ्वी पर फेंक दी। यह देखकर दुर्वासा मुनि ने इन्द्र को शाप देते हुए कहा,’इन्द्र! ऐश्वर्य के घमंड में तुमने मेरी दी हुई माला का आदर नहीं किया। यह माला नहीं, लक्ष्मी का धाम थी। इसलिए तुम्हारे अधिकार में स्थित तीनों लोकों की लक्ष्मी शीघ्र ही अदृश्य हो जाएगी।’
महर्षि दुर्वासा के शाप से त्रिलोकी श्रीहीन हो गयी और इन्द्र की राज्यलक्ष्मी समुद्र में प्रविष्ट हो गई। देवताओं की प्रार्थना से जब वे प्रकट हुईं, तब उनका सभी देवता, ऋषि-मुनियों ने अभिषेक किया। देवी महालक्ष्मी की कृपा से सम्पूर्ण विश्व समृद्धशाली और सुख-शान्ति से सम्पन्न हो गया। आकर्षित होकर देवराज इन्द्र ने उनकी इस प्रकार स्तुति की :
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