Vishnusahasranaama Artha va Vivaran: Part 16 - Shloka or Verse No 25 by Aparna Shankar Abhyankar | विष्णुसहस्रनाम अर्थ व विवरण: भाग १६- श्लोक क्र. २५, प्रस्तुति - सौ. अपर्णा शंकर अभ्यंकर
वसुर्वसुमनाः सत्यः समात्माऽसम्मितः समः ।
अमोघः पुण्डरीकाक्षो वृषकर्मा वृषाकृतिः ॥ २५॥
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मोघाशा मोघकर्माणो मोघज्ञाना विचेतस: |
राक्षसीमासुरीं चैव प्रकृतिं मोहिनीं श्रिता: ||भ.गी.९-१२||
चहू देहाचीही । करुनिया वीट ।
वारी उभा नीट । पांडुरंग ||
तया पुंडलीके । आम्हा सोपे केले ।
परब्रह्म उभे । ठेले विटेवरी ||
द्वारकेहुनी जगजेठी । आला पुंडलिकाचे भेटी ||
वैकुंठीचा देव । आणिला भूतळा ।
धन्य तो आगळा । पुंडलीक ||
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