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#मां चंद्रघंटा देवी दुर्गा के तीसरे रूप में जानी जाती हैं#जानें मां का मंत्र कथा भोग रंग रूप अलौकिक

आज चैत्र नवरात्रि के तीसरे दिन कब करें पूजा? जानें मां चंद्रघंटा का मंत्र, कथा भोग, व रंग
चैत्र नवरात्रि का तीसरा दिन माता चंद्रघंटा का दिन माना जाता है। इस दिन पूरे विधि-विधान से माता चंद्रघंटा की पूजा-उपासना करने से जीवन के सभी कष्ट दूर हो सकते हैं।
जानें मां चंद्रघंटा का मंत्र, कथा भोग, व रंग
चंद्रघंटा माता का स्वरूप: माता चंद्रघंटा का रूप अलौकिक है। माता के मस्तक पर अर्ध चंद्रमा विराजमान है। स्वर्ण की भांति चमकीला माता का शरीर, 10 भुजाओं वाला है। अस्त्र शस्त्र से सुशोभित मैया सिंह पर सवार हैं। पूरी विधि-विधान से चंद्रघंटा माता की पूजा करने और कथा का पाठ करने से शरीर के सभी रोग दुख कष्ट आदि दूर हो सकते हैं।
चंद्रघंटा मां का मंत्र
ॐ देवी चन्द्रघण्टायै नमः॥
ह्रीं श्री अम्बिकायै नम:
चंद्रघंटा मां का पसंदीदा रंग- लाल
चंद्रघंटा मां का पसंदीदा फूल- गुलाब और कमल
चंद्रघंटा मां का पसंदीदा भोग- दूध की खीर, दूध से बनी मिठाई
कथा: पौराणिक कथाओं के अनुसार, स्वर्ग पर राक्षसों का उपद्रव बढ़ने पर दुर्गा मैया ने चंद्रघंटा माता का रूप धारण किया था। महिषासुर नमक दैत्य ने सभी देवताओं को परेशान कर रखा था। महिषासुर स्वर्ग लोक पर अपना अधिकार जमाना चाहता था और सभी देवताओं से युद्ध कर रहा था। महिषासुर के आतंक से परेशान सभी देवता भगवान ब्रह्मा, विष्णु और महेश के पास जा पहुंचे। सभी देवताओं ने खुद पर आई विपदा का वर्णन त्रिदेवों से किया और मदद मांगी। देवताओं की विनती और असुरों का आतंक देख त्रिदेव को बहुत गुस्सा आया। त्रिदेवों के क्रोध से एक ऊर्जा निकली। इसी ऊर्जा से माता चंद्रघंटा देवी अवतरित हुई। माता के अवतरित होने पर सभी देवताओं ने माता को उपहार दिया। माता चंद्रघंटा को भगवान शिव ने अपना त्रिशूल, श्री हरि विष्णु जी ने अपना चक्र, सूर्य ने अपना तेज, तलवार, सिंह और इंद्र ने अपना घंटा माता को भेंट के रूप में दिया। अस्त्र शास्त्र शिशु शोभित मां चंद्रघंटा ने महिषासुर का मर्दन कर स्वर्ग लोक और सभी देवताओं को रक्षा प्रदान की।
विस्तृत और अधिक जानकारी के लिए संबंधित क्षेत्र के विशेषज्ञ की सलाह जरूर लें।
आज चैत्र नवरात्रि का तीसरा दिन है जय मां चंद्रघंटा सुख धाम...नवरात्रि के तीसरे दिन यहां से सुनीए पढ़िएमां चंद्रघंटा की आरती
मां चंद्रघंटा की पूजा उनकी आरती के बिना अधूरी मानी जाती है.
चैत्र नवरात्रि का तीसरा दिन मां चंद्रघंटा को समर्पित है. मां चंद्रघंटा देवी दुर्गा के तीसरे रूप में जानी जाती हैं. मां के मस्तक में घंटे के आकार का अर्धचंद्र है, उनके शरीर का रंग सोने की तरह चमकीला है और मां के दस हाथ हैं, जिनमें अलग-अलग अस्त्र और शस्त्र होते हैं. चंद्रघंटा माता शेर पर सवार होती हैं. मान्यताओं के अनुसार, चंद्रघंटा माता की पूजा करने से भक्तों को मानसिक शांति, सुख, समृद्धि और सुरक्षा का आशीर्वाद मिलता है. ऐसे में नवरात्रि के तीसरे दिन भक्त पूरे भक्ति भाव से चंद्रघंटा माता की पूजा-अर्चना कर, उनके नाम का उपवास रखते हैं. हालांकि, माता की पूजा (Maa Chandraghanta Puja Vidhi) उनकी आरती के बिना अधूरी मानी जाती है. ऐसे में पूजा के बाद आप यहां से पढ़कर चंद्रघंटा माता की आरती गा सकते हैं.
मां चंद्रघंटा की आरती
जय मां चंद्रघंटा सुख धाम।
पूर्ण कीजो मेरे सभी काम।
चंद्र समान तुम शीतल दाती।
चंद्र तेज किरणों में समाती।
क्रोध को शांत करने वाली।
मीठे बोल सिखाने वाली।
मन की मालक मन भाती हो।
चंद्र घंटा तुम वरदाती हो।
सुंदर भाव को लाने वाली।
हर संकट मे बचाने वाली।
हर बुधवार जो तुझे ध्याये।
श्रद्धा सहित जो विनय सुनाएं।
मूर्ति चंद्र आकार बनाएं।
सन्मुख घी की ज्योत जलाएं।
शीश झुका कहे मन की बाता।
पूर्ण आस करो जगदाता।
कांची पुर स्थान तुम्हारा।
करनाटिका में मान तुम्हारा।
नाम तेरा रटू महारानी।
भक्त की रक्षा करो भवानी।
मां चंद्रघंटा का मंत्र (Maa Chandraghanta Mantra)
पिण्डजप्रवरारूढ़ा चण्डकोपास्त्रकेर्युता.
प्रसादं तनुते मह्यं चंद्रघण्टेति विश्रुता॥

ध्यान मंत्र
वन्दे वांछित लाभाय चन्द्रार्धकृत शेखरम्.
सिंहारूढा चंद्रघंटा यशस्वनीम्॥
मणिपुर स्थितां तृतीय दुर्गा त्रिनेत्राम्.
खंग, गदा, त्रिशूल,चापशर,पदम कमण्डलु माला वराभीतकराम्॥
पटाम्बर परिधानां मृदुहास्या नानालंकार भूषिताम्.
मंजीर हार केयूर,किंकिणि, रत्नकुण्डल मण्डिताम॥
प्रफुल्ल वंदना बिबाधारा कांत कपोलां तुगं कुचाम्.
कमनीयां लावाण्यां क्षीणकटि नितम्बनीम्॥

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