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पितृ गायत्री मंत्र ( Pitra Gayatri Mantra )108 Times With Lyrics
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Pitra Gayatri Mantra
ॐ पितृगणाय विद्महे जगत धारिणी धीमहि तन्नो पितृो प्रचोदयात्।
पितरों की प्रसन्नता के लिए पितर पक्ष में जरूर करें ये उपाय
पितृ गायत्री पाठ को पढ़ने से भी पितरों को मुक्ति मिलती है और वे हमें आशीर्वाद देते हैं। इस दौरान पितृ गायत्री मंत्र और ब्रह्म गायत्री मंत्र का भी जप करना चाहिए।
1- पितृ पक्ष में पूर्णिमा से लेकर अमावस्या तक शाम को एक सरसों के तेल, या गाय के घी का दीपक दक्षिण मुखी लौ करके जलाये ।
2- पितृ पक्ष में प्रतिदिन पितरों के निमित्त तर्पण करे या किसी ब्राह्मण से करवायें ।
3- पितृ पक्ष में प्रतिदिन पितृ सूक्त के पितृ गायत्री का संपुट लगाकर के अधिक से अधिक पाठ करे या करवाये वैसे 11000 पाठ में अनुष्ठान की पूर्णता होती है ।
4- पितृ पक्ष में प्रतिदिन पितृ गायत्री मंत्र का जप अवश्य करें । पितृ दोष से मुक्ति मिलेगी ।
5- प्रत्येक श्राद्ध वाले दिन यथाशक्ति ब्राह्मणों या गरीबों को भोजन कराये और यथाचित दक्षिणा देकर आशीर्वाद लें ।
6- प्रत्येक श्राद्ध वाले दिन गाय, कुत्ते, चीटियों, और कौआ को भी भोजन प्रदान करना चाहिए ।
7- पितृ पक्ष में पितरों की अनुकूलता पाने हेतु श्री मद्भागवत महापुराण का मूल पाठ तथा श्रीमद्भगवद गीता का पाठ आदि भी किये या किये जा सकते है ।
8- पितृ पक्ष में पितरों की कृपा पाने के लिए ब्रह्म गायत्री मंत्र का भी जप अनुष्ठान किया जा सकता है ।
9- सर्व पितृ आमावस्या के दिन ब्राह्मणों, या गरीबों को भोजन कराने से पितृ पक्ष में भूलवश कोई श्राद्ध करने से छूट गया हो तो उसकी पूर्ति अमावस्या को हो जाती है ।
10- पितरों की प्रसन्नता के लिए प्रत्येक महीने की अमावस्या तिथि को सरसों के तेल का दीपक सूर्यास्त के समय दक्षिण मुखी जलाना चाहिए ।
पहले आप यह स्पष्ट समझ लें कि पितृ गायत्री, चौबीस अक्षर के गायत्री मंत्र की तरह, उपनयन (यज्ञोपवीत) संस्कार के समय दिया जाने वाला मन्त्र नहीं है और न ही यह संध्या वंदन का अंग है, न ही इसकी साधना विहित है। वेद विहित अलग अलग कार्यों के लिए अलग अलग मन्त्र होते हैं। उनका प्रयोजन एवं प्रयोग निर्धारित होता है। इसीलिए कहा गया है कि,वेद विधि निषेधमय होते हैं। जिस प्रकार उड़हुल (अड़हुल) का लाल फूल बहुत अच्छा होता है यह माता भगवती को बहुत प्रिय है,माता भगवती एवं भगवान् शंकर अभिन्न हैं, विष्णु एवं लक्ष्मी भी अभिन्न हैं किन्तु उड़हुल का रक्तपुष्प भगवान् शिव एवं विष्णु को चढ़ाना वर्जित है। हमारे मैथिल साम्प्रदायिक कर्मकाण्ड पद्धति में यदि पिता का स्वर्गवास हो गया है तभी पुत्र, पितृ तर्पण एवं पार्वणश्राद्ध करने के अधिकारी होते हैं। यदि माता का स्वर्गवास हो गया है एवं पिता जीवित हैं तो पुत्र केवल वार्षिक श्राद्ध कर सकता है, तर्पण एवं पार्वण श्राद्ध नहीं कर सकता। अब आपके प्रश्न पितृ गायत्री के जप के विधि पर आते हैं, पार्वण के समय पहले,पार्वण करने वाले को स्नान के बाद शुद्धिकरण(अपवित्रः पवित्रो वा सर्वाऽवस्थांगतोऽपि वा यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यान्तरः शुचिः, पुण्डरीकाक्षः पुनातु माम् अर्थात् पवित्र अथवा अपवित्र जिस अवस्था में हों सभी अवस्था में जो कमल नयन भगवान् विष्णु का स्मरण करता है वह भीतर बाहर दोनों से पवित्र है,कमल नयन भगवान् विष्णु मुझको पवित्र करें ) करने के बाद,सूर्यादि पञ्चदेवता पूजन, विष्णु पूजन उसके बाद पार्वण श्राद्ध का संकल्प फिर चौबीस अक्षर वाले देव गायत्री का तीन बार जप करने के बाद( 1) पितृ गायत्री का तीन बार जप (पाठ) करने का विधान है। देव गायत्री का मन ही मन में जाप करना चाहिए जबकि पितृ गायत्री का पाठ करने का विधान है, उसे ही पितृ गायत्री का जाप कहते हैं। उन देव मन्त्रों से आहुति देने अर्थात् हवन करने में स्फुट उच्चारण अर्थात् स्पष्ट उच्चारण (पाठ) का प्रावधान है। इसी प्रकार स्तुति परक मन्त्रों के स्फुट उच्चारण का प्रावधान है। अब पार्वण करने (विस्तृत होने के कारण पूर्ण विधि लिखना, संभव नहीं) के अंत में फिर तीन बार पितृ गायत्री के पाठ का विधान है। शुभं भवतु।
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