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शोक दुःख विनाशिनी काली स्तोत्रम् | दक्षिण कालिका कवचम् | Dakshin Kalika Kavacham

शोक दुःख विनाशिनी काली स्तोत्रम् | दक्षिण कालिका कवचम् | Dakshin Kalika Kavacham by Balram pandey with pure sanskrit lyrics 🚩🙏

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।। दक्षिण कालिका कवचम् ।।
भैरव् उवाच -
कालिका या महाविद्या कथिता भुवि दुर्लभा ।
तथापि हृदये शल्यमस्ति देवि कृपां कुरु ॥ १॥
कवचन्तु महादेवि कथयस्वानुकम्पया ।
यदि नो कथ्यते मातर्व्विमुञ्चामि तदा तनुम् ॥ २॥
श्रीदेव्युवाच -
शङ्कापि जायते वत्स तव स्नेहात् प्रकाशितम् ।
न वक्तव्यं न द्रष्टव्यमतिगुह्यतरं महत् ॥ ३॥
कालिका जगतां माता शोकदुःखविनाशिनी ।
विशेषतः कलियुगे महापातकहारिणी ॥ ४॥
काली मे पुरतः पातु पृष्ठतश्च कपालिनी ।
कुल्ला मे दक्षिणे पातु कुरुकुल्ला तथोत्तरे ॥ ५॥
विरोधिनी शिरः पातु विप्रचित्ता तु चक्षुषी ।
उग्रा मे नासिकां पातु कर्णौ चोग्रप्रभा मता ॥ ६॥
वदनं पातु मे दीप्ता नीला च चिबुकं सदा ।
घना ग्रीवां सदा पातु बलाका बाहुयुग्मकम् ॥ ७॥
मात्रा पातु करद्वन्द्वं वक्षोमुद्रा सदावतु ।
मिता पातु स्तनद्वन्द्वं योनिमण्डलदेवता ॥ ८॥
ब्राह्मी मे जठरं पातु नाभिं नारायणी तथा ।
ऊरु माहेश्वरी नित्यं चामुण्डा पातु लिङ्गकम् ॥ ९॥
कौमारी च कटीं पातु तथैव जानुयुग्मकम् ।
अपराजिता च पादौ मे वाराही पातु चाङ्गुलीन् ॥ १०॥
सन्धिस्थानं नारसिंही पत्रस्था देवतावतु ।
रक्षाहीनन्तु यत्स्थानं वर्जितं कवचेन तु ॥ ११॥
तत्सर्वं रक्ष मे देवि कालिके घोरदक्षिणे ।
ऊर्द्धमधस्तथा दिक्षु पातु देवी स्वयं वपुः ॥ १२॥
हिंस्रेभ्यः सर्वदा पातु साधकञ्च जलाधिकात् ।
दक्षिणाकालिका देवी व्यपकत्वे सदावतु ॥ १३॥
इदं कवचमज्ञात्वा यो जपेद्देवदक्षिणाम् ।
न पूजाफलमाप्नोति विघ्नस्तस्य पदे पदे ॥ १४॥
कवचेनावृतो नित्यं यत्र तत्रैव गच्छति ।
तत्र तत्राभयं तस्य न क्षोभं विद्यते क्वचित् ॥ १५॥
।। दक्षिण कालिका कवचम् ।।

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