Vishnusahasranaama Artha va Vivaran: Part 14 - Shloka or Verse No 23 by Aparna Shankar Abhyankar | विष्णुसहस्रनाम अर्थ व विवरण: भाग १४- श्लोक क्र. २३, प्रस्तुति - सौ. अपर्णा शंकर अभ्यंकर
सुरेशः शरणं शर्म विश्वरेताः प्रजाभवः ।
अहः संवत्सरो व्यालः प्रत्ययः सर्वदर्शनः ॥ २३॥
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यदादित्यगतं तेजो जगद्भासयतेऽखिलम्।
यच्चन्द्रमसि यच्चाग्नौ तत्तेजो विद्धि मामकम् ॥ भ.गी. १५-१२॥
शरण शरण नारायणा । मज अंगीकारा दीना ॥ १॥
तुका म्हणे देवा शीर । ठेवियले पायावर ॥ २॥
बहू हिंडता सौख्य होणार नाही ।
सिणावे परी नातुडे हीत काही ॥
विचारे बरे अंतरा बोधवीजे ।
मना सज्जना राघवी वस्ति कीजे ॥
॥ मनाचे श्लोक - ४१ ॥
रे मन ! रामसो कर प्रीत ।।
श्रवण गोविन्द-गुण सुनो, अरू गाउ रसना गीत ।। १ ।।
कर साधु-संगत सुमिर माधो, होय पतित पुनीत ।। २ ।।
काल व्याल ज्यों पर्यो डोलै, मुख पसारे मीत ।। ३ ।।
आजकल पुनि तौहि ग्रसिहै, समझ राखो चीत्त ।। ४ ।।
कहे नानक राम भज ले, जात अवसर बीत ।। ५ ।।
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