Vishnusahasranaama Artha va Vivaran: Part 26 - Shloka or Verse No 35 by Aparna Shankar Abhyankar | विष्णुसहस्रनाम अर्थ व विवरण: भाग २६- श्लोक क्र. ३५, प्रस्तुति - सौ. अपर्णा शंकर अभ्यंकर
अमृत्युः सर्वदृक् सिंहः सन्धाता सन्धिमान् स्थिरः ।
अजो दुर्मर्षणः शास्ता विश्रुतात्मा सुरारिहा ॥ ३५॥
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नाभिषेको न संस्कारः सिंहस्य क्रियते वने।
विक्रमार्जितसत्वस्य स्वयमेव मृगेन्द्रता ॥
न जायते म्रियते वा कदाचि । न्नायं भूत्वा भविता वा न भूय: |
अजो नित्य: शाश्वतोऽयं पुराणो । न हन्यते हन्यमाने शरीरे ||
|| भ.गी.२-२० ||
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